सच्चा मित्र | ब्लॉग ऊंचाईयाँ
सच्चे मित्र से मिलने की खुशी और मन में कशमकश करते, कई प्रश्न, कई बातें, यूं ही बयान हो जाती है, जब लगता है, कोई अपना मिल गया है, अब कुछ कहना इतना जरूरी नहीं क्योंकि वो मेरा मित्र है, वो मुझे देख कर ही मेरे दिल में क्या चल रहा है सब जान जाएगा।
हर बार सोचता हूं
आज उसे दिल के सारे
हाल बता दूंगा, शब्द जुबान
पर होते हैं, मैं बोल भी नहीं पाता
वो मुझे देखकर यूं मुस्कराता है
जैसे सब समझ गया
वो मेरा मित्र, कुछ अलग है दुनियां से।
मेरा सहयोगी तो है, पर जताता नहीं
मैं जानता हूं, वो प्रेरणा बनकर मुझे
प्रेरित करता रहता है, क्योंकि वो मुझे ही
योग्य और समझदार बनना चाहता है।
घंटों बैठ कर मैं उससे बातें करता रहा,ना जाने क्या-क्या….।
आज पता नहीं उससे बातें करने के लिए मेरे पास इतना समय कहां से आ गया था।
वरना, मेरे कितने काम यूं ही रुके रहते थे कि आज समय नहीं है कल करूंगा, प्रतिदिन का यही बहाना, आज समय नहीं है कल करूंगा।
मैं स्वयं हैरान था, चार घंटे उसके साथ बैठकर ऐसे बीते जैसे चार पल।
परंतु आज दिल पर पढा सारा बोझ हल्का हो गया था, मैंने अपने दिल की सारी बातें उसको कह सुनाई थी। मैं सुनाता रहा वो सुनता रहा मैं हैरान था, मैंने कहा आज तक मेरी इतनी बातें किसी ने नहीं सुनी जितनी तुमने सुनी, वो बोला मैं तो कब से इंतजार में था कि तुम मुझसे बातें करो, तुम ही मेरे पास नहीं आए, तुमने सोचा होगा कि मैं भी औरों की तरह हूं।
ऐसा ही होता है जिसे हम अपना समझते हैं वो अपना नहीं होता और जो अपना होता है उसे हम अपना नहीं समझ पाते।
हमें जो मिलता है उससे हमें खुशी नहीं मिलती और हमारे पास जो नहीं होता उसमें हम खुशी ढूंढ़ते हैं और पागलों की तरह अपना जीवन कष्टदाई करते रहते हैं।