कभी – कभी मेरे गीतों को गुनगुनाया करो ( गज़ल ) | ब्लॉग मेरी आवाज
कभी – कभी मेरे तुम पास भी आया करो
कभी – कभी मेरे होंठों से मुस्कुराया करो
मेरी जुबाँ में सदा नाम तेरा रहता है
कभी – कभी मेरे गीतों को गुनगुनाया करो
कि वो तुम्हारी हर इक साँसें मुझपे गिर्वी हैं
कभी – कभी अपनी साँसें मुझसे ले जाया करो
मैंने अक्सर तुम्हें इस दिल की गली में देखा
कभी – कभी अपने दिल में मुझे बसाया करो
नीलेन्द्र शुक्ल ‘नील’ जून 2016 से ब्लॉग दुनिया में आए है। ये काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से संस्कृत में स्नातक के छात्र है। आपसे sahityascholar1@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।
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