ग़ज़ल-प्यादा
मेरी उजरत कम, तेरी ज़रूरत ज्यादा है
ऐ ज़िंदगी कुछ तो बता, तेरा क्या इरादा है।
दांव पर ईमान लगाकर, तरक़्क़ी कर लेना
आज के दौर का, फ़लसफ़ा सीधा सादा है।
हड़बड़ी में दिख रहा, ख्वाहिशों का समंदर
लहरों में उफान है, आसमां पे चाँद आधा है।
ऐ जम्हूरियत तू भी, अब पहले जैसी नहीं रही
आजकल मुल्क में काम कम, शोर ज्यादा है।
बहुत हुई बारूदों की ज़िद, ये तमंचों की होड़
ख़ुदा ख़ैर करे, अभी क्या कम खून ख़राबा है।
नूर की ख़ातिर सितारे को, इतना ना निचोड़ो
सीधा चाँद को थामो, ये तो उसका एक प्यादा है।
अमित जैन ‘मौलिक’ लेखक, कवि एवं एंकर है। आप मूलतः रेस्तरा व्यवसाय में है और जबलपुर, मध्यप्रदेश के निवासी है। लेखक ज़्यादातर रोमांटिक शायरी, ग़ज़ल, गीत, कवितायें लिखते है, इसके साथ ही भाषण, मंच संचालन सामग्री, कहानियाँ एवं नुक्कड़ नाटक आदि भी लिखते है।
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